*इंग्लिश मीडियम स्कूल*
----------------------------
आखिर ऐसी क्या आवश्यकता है इन इंग्लिश मीडियम स्कूलो की ???? क्या करने जा रहे हम नौनिहालों के साथ????
सेकंड लैंग्वेज (अंग्रेजी ) में शिक्षा क्यो जरूरी है ?
क्या इंग्लिश मीडियम में पढ़ने से लर्निंग लेवल उच्चस्तरीय हो जाएगा ?
ऐसी कौन सी विधा है शिक्षा की जो केवल इंग्लिश मीडियम में ही संभव है ?
ये कुछ सवाल हुक्मरानों से है जो आजकल इन इंग्लिश मीडियम स्कूलो को बढ़ावा दे रहे है सुना है बेसिक एजुकेशन में समस्त जनपदों के प्रत्येक विकास खण्ड से 5 स्कूल चयनित कर अगले सत्र से अंग्रेजी मीडियम बनाया जाएगा......
क्या चाहते हो शिक्षाविदों ?
अंग्रेजी भाषा जो अंग्रेजी शासन से लेकर अब तक हर स्तर के छात्रों में भूत का पर्याय है उस भाषा मे शिक्षा .... थोड़ी देर के लिए मान लेते है शतप्रतिशत सफलता की गारंटी है अंग्रेजी मीडियम स्कूल .... ymca यंग मैन क्रिश्चियन असोसिएशन या ywca यंग वूमेन क्रिश्चियन असोसिएशन जो देश मे अंग्रेजी मीडियम को स्कूलो द्वारा परोसने की सबसे बड़ी और सम्मानित संस्था मानी जाती है ।ऐसे इंग्लिश मीडियम स्कूलो को ही लीजिये.... सफलता दर कितनी है ?
क्या सिखा रहे है अनुशासन? देखिये इन स्कूलों में .... विद्यार्थियों का मनोवैज्ञानिक अनुकूलन देखिये और तुलना कीजिये क्या वास्तव में सही व्यवस्था है ....इसके बाद गांव गली मोहल्ले में उगे हुए कुकुरमुत्ते इंग्लिश मीडियम स्कूलो को देखिए .... क्या हाल है वहा का सिर्फ बस्ते का बोझ ही अधिक पाएंगे.... मैनेजमेंट की हरामखोरी नजर आएगी.... अविभावक डायलिसिस पर रखा नजर आएगा
ये तो था सैद्धांतिक चिंतन ।।।
प्रायोगिक धरातल पर खड़े होकर सोचिए
इंग्लिश मीडियम से क्या क्या फायदे है कोई एक फायेदा बताईये जो हिंदी माध्यम से अलग हो ?
जब कोई फायेदा नही तो क्यो अंधानुकरण कर रहे हो ??
बन्द करो ये व्यवस्था कोई एक माध्यम रहने दो शिक्षा का .....मगर देश के हुक्मरान तो और बढ़ावा दे रहे है
नर्सरी में दाखिल कराया बच्चे को अभी वह ठीक से अपनी माँ की भाषा मदर टँग को नही समझ पाया है और उस नंन्ही सी जान पर एक बोझ और लाद दिया
बेचारा शिकायत भी नही कर सकता .... ये है इंग्लिश मीडियम
और आगे की सोचिए .....
मतलब अगली कक्षाओं की .... लर्निंग लेवल का स्तर जो मदर टँग में प्राप्त किया जा सकता वह दूसरी या तीसरी भाषा मे कभी भी प्राप्त नही हो सकता .... वैचारिक आदान प्रदान हो या सम्प्रेषण शिक्षा की समस्त विधाएं सिर्फ अपनी प्रथम भाषा में ही सरल और सहज रूप से सम्भव है ..... इंग्लिश मीडियम स्कूलो में पहले सेकंड लैंग्वेज सीखे फिर विषय वस्तु के प्रति समझ जबकि अभी उसका बौद्धिक स्तर इतना परिपक्व नही है फिर भी अंग्रेजी माध्यम का एक और बोझ जरूर लाद दिया बच्चे पर
लैंग्वेज सीखना इतना कठिन तो नही लेकिन समय साध्य जरूर है कुछ निश्चित सोपानों द्वारा भाषा सीखी जाती है ।यह सर्व विदित है जैसे फर्स्ट लैंग्वेज सीखी है वैसे ही सेकंड लैंग्वेज सीखी जा सकती है
लेकिन दुर्भाग्य से इंग्लिश के साथ ऐसा होना सम्भव ही नही है ।
भाषा सीखने के लिए सबसे पहले उसे सुना जाता है , फिर बोला जाता है, फिर पढा जाता ,उसके बाद लिखा जाता है लेकिन इंग्लिश में क्या हुआ ?
इन कुकुरमुत्ता स्कूलो को ही लीजिये
4 लाइन की कॉपी पर 4 खड़ी लाइन खींचकर 4 कॉलम बना दिये और उन कॉलम में A B C D मास्टर जी द्वारा लिखकर बच्चे से अपेक्षा की गई शेष लाइन में कॉपी करने की .....
जो स्किल सबसे बाद में विकसित होनी थी वह पहले शुरू कर दी ..... जय हो
उल्टा पढा दिया सब खुश है सरकार अविभावक और टीचर
बन गए अंग्रेज की दुम..... न हिंदी सीख सके ठीक से और अंग्रेजी हो गयी घण्टा
ये है वर्तमान व्यवस्था .....इसको बढ़ावा दिया जा रहा है
हमारे देश के लिए पूर्णतया अनफिट है ये अंग्रेजी मीडियम स्कूल .... लेकिन सरकार की मंशा है इनको बढ़ावा देना .... उपादेयता और उपयोगिता अभी से शंकित है तो भविष्य में कैसा होगा सहज अनुमान लगाया जा सकता है
कही न कही ये इंग्लिश मीडियम स्कूल हम लोगो की मानसिक गुलामी का प्रतीक नजर आते है
जय हो....
🙏
*निज विचार मात्र*